Saturday, August 3, 2013

रमल ज्योतिष

रमल (अरबी ज्योतिष)
रमल (अरबी ज्योतिष) शास्त्र मेंभविष्यवाणी kundali (कुंडली) के बिनाकिया जाता है. इसमें किसी भी प्रकार की कुंडली की कोई जरूरत नहीं है.इसमें केवल पांसे इस्तेमाल किये जाते हैं सवाल पूछ रहे व्यक्ति के हाथ में पांसेदेकर अपने इष्टदेव को स्मरण कर प्रश्न कर सामने फेंकने के लिए कहा जाता हैइन पांसों से निश्चित आंकड़ा फार्म पर बनाकर उस आधार भविष्यवाणी की जाती है.! रमल शास्त्र के इस ज्योतिष में जायचा बनाया जाता है जिस्मे १६ घर होते हैं जिनके द्वारा ९९ प्रतिशत अचूक भविष्यवाणी की जाती है
रमल ज्योतिष वास्तव में रमल ज्योतिष भारतीय मूल का शास्त्र है। नेपोलियन प्रश्न प्रणाली का मूल स्रोत भी रमल विद्या ही है। इस शास्त्र के प्रचार प्रसार में यवन विद्वानों का योगदान होने से इसे यवनीय ज्योतिष भी कहा जाता है। हम यहाँ इस शास्त्र के पूर्वापर की पूर्ण जानकारी संक्षेप में दे रहे हैं। जिससे इस विद्या के सहज जिज्ञासु जनों तथा विज्ञजनों को समान रूप से ज्ञानार्जन होगा। दूरदर्शन पर कुछ साल पहले प्रदर्शित हुए धारावाहिक 'चंद्रकांतामें रमल पंडित एवं रमल ज्योतिष आम दर्शकों के लिये बहुत ही अलग एवं लोकप्रिय बात बनी थी। धारावाहिक 'चंद्रकांताके निर्माता एवं लेखक तथा दिग्दर्शक आदि सभी ने अपने अपने तरीके से यह बात दिखलाई। परंतु वास्तव में यह रमल ज्योतिष एक शास्त्र है और धारावाहिक में दिखाई गई बातों से भिन्न है। मथितार्थ की बात मात्र इतनी हैं किपुरातन काल से रमल शास्त्र प्रचलित है। द्वापर युग में इस शास्त्र का प्रचलित होना इस बात का सबूत है। इतिहास में जिमुतवाहन के दरबार में रहे विष्णुगुप्त शर्मा इस शास्त्र के उत्तम ज्ञाता थे। पांडवों के दरबार में मय भी इस विद्या में प्रवीण थे। परमपूज्य आद्य शंकराचार्य भीइस शास्त्र का गहन ग्यान रखते थे। रमल शास्त्र के आधार पर हीराजा सुधन्वा के दरबार में बंद घट में क्या रखा गया था इसका सही सही जवाब दिया था। महाराष्ट्र के परम आध्यात्मिक गुरु एवं संत महात्मागुलवणी महाराजजी की मृत्यु किस दिन होगीइसे एक रमलज्ञ ने पहले ही बता दिय था। महाराष्ट्र की राजनीति के नेता श्रीसुधाकरराव नाईक मुखयमंत्री बनेंगे ऐसी भविष्यवाणी भालचंद्र विद्यालय की एक छात्रा नेरमलशास्त्र की सहायता से की थी जो सही निकली। श्री नाईक जी के बाद कौन बनेगा महाराष्ट्र का मुखयमंत्री इस का सही अनुमान भी इसी शास्त्र के सहारे निकाला था। नेपोलियन प्रश्नप्रणाली का मूल स्रोत भी रमलविद्या ही है। ईस्वीसन की पहली अथवा दूसरी सदी में अन्य विद्याओं के साथ अरब इस शास्त्र को अपने देश ले गए ऐसा हिंदुओं का दावा है। इस शास्त्र का प्रसार यवन मौलवियों ने किया इसलिये इसे 'यवनीय ज्योतिषभी कहा जाता है। इस शास्त्र के प्रचार एवं प्रसार में आदमदानियललुकमानहाकीम आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विश्वविजेता सिकंदर के साथ मौलवी सुरखाव हमेशा रहा करते थे। उसके अपने ज्योतिष सलाहकार मौलवी सुरखान हमेशा रहा करते थे। सिंकंदर के साथ वे भी भारत आए तब से इस शास्त्र का प्रचार प्रसार भारत में हुआ ऐसा यवनों का मानना है। जन कल्याण के लिये उपयुक्त अन्य शास्त्रों जैसा ही इस शास्त्र का उद्गम उमा-महेश्वर के द्वारा हुआ है। ऐसा माना जाता है । माता-पावर्ती ने भगवान शंकर से सर्वकालीन शास्त्रों का ज्ञान विशद करने की विनती की और इस शास्त्र का जन्म हुआ। द्वापर युग के उत्तरार्द्ध में किसी विद्वान युवक ने शिवजी की प्रखर आराधना की और शिवजी के प्रसन्न होने पर उनसे भूतवर्तमान एवं भविष्य को जानने का ज्ञान प्राप्त होने का वरदान मांगा। शिवजी ने तब उसे 'पूर्व रचित रमल विद्याके ज्ञान का वरदान दिया और कहा कि पृथ्वी पर इस ज्ञान के उद्गाता के रूप में तुम्हें सम्मान मिलेगा और तुम 'आदमनाम से जाने जाओगे। यथा समय आदम के अनुयायियों ने इस विद्या का प्रचार एवं प्रसार किया। इसीलिये भारतीय इस बात का दावा करते हैं कि इस रमलविद्या का उदगम एवं इस शास्त्र का प्रसार भी यहीं पर हुआ है। पुरातन काल से पांसे इस्तेमाल होने की वजह से इसे रमलशास्त्र कहा जाता है ऐसा भी ज्ञानी लोगों का मानना है। हम भारतीयों की तरह यवन भी इस बात का दावा करते हैं कि यह शास्त्र उनके देश से ही सभी जगहों पर पहुंचा है। उनके अनुसार हजरत दानियल अल् हिस सलाम ने राजस्थान के रेगिस्तान में मुहम्मद पैगंबर की इबादत की ओर नेमते मांगी कि, '' या खुदाभारत में इस्लाम को पुखता बनाने के लिये मुझ पर मेहर नजर कर। ऐसा इल्म दे कि जिसकी वजह से आम लोग मुझ पर बे-इंतिहा यकीन करें और मैं इस्लाम की जड़ें मजबूत कर सकूं।'' दानियल की इस प्रार्थना से खुश होकर हजरत जिब्राइल अलियस सलाम (पैगंबर के दूत) प्रगट हुए और उन्होंने दानियल को रेगिस्तान की रेती में अपने पंजों को हथेली की ओर से दबाने के लिये आज्ञा दी। उस दबास से रेती में जो आकृति निर्माण हुई उसी के गहरे अभ्यास से इस शास्त्र का निर्माण हुआ। रमल शब्द का अर्थ भी रेती है। चूंकि रेत में इस शास्त्र का निर्माण हुआइसलिए इसे 'रमल शास्त्रकहा जाता है। यवन लोगों का यह दावा उनके द्वारा प्रचार एवं प्रसार करने की वजह से किया जाता है। दोनों पक्षों का विचार करने पर किस पर विश्वास जताया जाय यह मुद्दा विवादास्पद हो सकता है। सत्य कुछ भी हो हमारा मतलब तो इस शास्त्र के गहन अध्ययन से जुड़ा हैं। फिलहाल यह शास्त्र पिछड़ गया ऐसा लगता है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है किप्रचलित समाज में इसके बारे में फैली अफवाएं ! उदाहरण के तौर पर यह कहा जाता है किइस शास्त्र के आधार से यदि भविष्य बतलाया जाय तब उस व्यक्ति के वंश का नाश (निर्वेश) हो जाता हैंउस व्यक्ति का अंत काल दुःखद होजाता हैउसे पागलपन के झटके लगते हैईश्वर की अवकृपा होती है एवं उसके पूरे कुटुंब कबीले को बहुत से क्लेश एवं दुख झेलने पड़ते हैं। इसवी सन् बीस के शतक के मध्य से यह शास्त्र बड़ी तेजी से पिछड़ता गया।(केवल महाराष्ट्र में ही नहीं वरन् पूरे भारत भर में मिला कर कुल सात-आठ रमल विशेषज्ञ हैं। पिछले कुछ सालों से दो-तीन ज्योतिष संस्थाओं ने यह विषय प्रचार हेतु अपनाया है। रमल कुंडली में सोलह स्थान होते हैं जबकि फलित ज्योतिष कुंडली बारह स्थानों की होती है। कुंडली का यहां मतलब 'जायचाहोता हैं। रमल 'जायचातैयार करने की अनेक पद्धतियों में से 'पासोको फैंक कर तैयार होने वाली 'जायचाकी पद्धति सर्वश्रेष्ठ आंकी गई है। 'पॉसातैयार करने के लिये तांबापीतलचांदीनिकलसोनासीसा और लोहा इन सात धातु का प्रमाणित मिश्रण इस्तेमाल होता है। रमल शास्त्र का मूलाधार-पृथ्वीजलतेज और वायु-चार तत्व हैं। इन चार तत्वोंनव ग्रहऔर रमल जंत्री के सोलह स्थान आदि का मेल पाकर भविष्य कथन किया जाता है। कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के जवाब पाने के लिये एक बहुत ही सरल पद्धति का अवलंबन किया जाता है। जबाव अगर सही सही पाना हो तो प्रश्नकर्ता को प्रश्न भी आंतरिक सत्यता से पूछना अति आवश्यक होता है। अनुभव यही कुछ दर्शाते हैं। 16 अंक रमल जंत्री के सोलह स्थानों के तथा सोलह शकलों के निर्देशक हैं। जैसे लह्मान शकल, 2 अंक कबजतुल 3. खारीज शकल, 4 जमात शकल, 5 फरहा शकल, 9 बयाज शकल, 5 फरहा शकल, 6 उकला हुमरा शकल, 9 बयाज शकल, 10 नुस्ततुल् खारीज शकल, 11 नुस्ततुल्दाखील शकल, 12 उत्पतुल खारीज शकल, 13 नकी शकल, 14 उत्पतुल दाखील, 15 इज्जतमा शकल का, 16 तारीख शकल का निर्देशक हैं। यह सोलह शकलों का विभाजन साबीन स्वरूप के चारदाखील स्वरूप के चारमुनाकलिब स्वरूप के चार और खारीज स्वरूप के चार शकलों में किया हैं। उसके नाम और क्रमांक - साबीत स्वरूप के चार शकल (जमात नामका शकल जिसका क्रमांक है और इज्जतमा नामका शकल जिसका क्रमांक 15 है)दाखील स्वरूप के चार शकल (कबजतूल दाखील जिसका क्रमांक 2 हैअंकीश नामका शकल जिसका क्रमांक 11 हैनुस्ततुल दाखील जिसका क्रमांक 14 है) खारीज स्वरूप के चार शकल (लह्यान नामका शकल जिसका क्रमांक हैकबजतूल खारीज नामका शकल जिसका क्रमांक हैनुस्ततुल खारीज नामका शकल जिसका क्रमांक 10 है और उत्पतुल खारीज जिसका क्रमांक 12 है) मुनाकलीब स्वरूप के चार शकल (फरहा नामका शकल जिसका क्रमांक हैउकला नामका शकल जिसका क्रमांक 13 है और तारीख नामका शकल जिसका क्रमांक 16 है। प्रश्नों का विभाजन 'आगमऔर 'निर्गमऐसे दो हिस्सो में किया हैं। आगम स्वरूप के प्रश्नों का जबाब हां में आने के लिए 'साबीत' (जमात (4), हुमरा (8), ब्याज (9), इज्जतमा (15) ये) अथवा 'दाखील' (कबजतूल दाखील (11), उत्पतुल दाखील (14) ये) शकलों में से कोई भी एक शकल आना जरूरी है। उदाहरण के लिए नसीब में संतान सुख है या नहींक्या नौकरी मिलेगीक्या मकान बनेगाक्या नई कारकी खरीदी हो पाएगीधनलाभ होगाऊर्जा मिलेगी ये प्रश्न आगम स्वरूप में आते हैं।'निर्गमस्वरूप के प्रश्नों का जवाब हां में आने के लिए खारीज शकलों में से कोई भी एक शकल आना चाहिए। क्या रोग ठीक हो जाएगाविदेश यात्रा होगीकिरायेदार मकान छोड़के जाएगा?ऋणमुक्त होने का अवसर हैये प्रश्न निर्गम स्वरूप में आते हैं। प्रश्न निर्गम स्वरूप का रहने से जवाब हां में आने के लिए खारीज या मुनाकलिब शकलों का क्रमांक आना जरूरी है।जायचा की शक्ल के अनुसार उत्तर मिल जाता है। इस तरह आप किसी भी प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। इस भविष्य कथन में ९९% हर प्रश्न का सहीह उत्तर मिल जाता है
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